" शर्मिला चांद "

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अपनी तारीफों को सुन देखो, चांद आसमान का आज शरमा गया, छुप गया बादलों की ओट में, देख ये मन फिर भरमा गया, बचपन से बुढ़ापे तक, ये सफर इस शशि ...

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